Srimad Bhagavd Gita Sadhak Sanjivani श्रीमद्भगवतगीता साधक संजीवनी Code 6

Publisher

Language

Edition

2024

Pages

1296

Cover

Hardcover

Size

28*6*18

Weight

2.20 KG

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Description

श्रीमद्भगवतगीता साधक संजीवनी (Srimad Bhagavd Gita Sadhak Sanjivani) भगवान् अनन्त हैं, उनका सब कुछ अनन्त है, फिर उनके मुखारविन्दसे निकली हुई गीताके भावोंका अन्त आ ही कैसे सकता है? अलग-अलग आचार्योंने गौताकी अलग-अलग टीका लिखी है। उनकी टीकाके अनुसार चलनेसे मनुष्यका कल्याण तो हो सकता है, पर वह गीताके अर्थको पूरा नहीं जान सकता। आजतक गौताकी जितनी टीकाएँ लिखी गयी हैं, वे सब की सब इकट्ठी कर दें तो भी गीताका अर्थ पूरा नहीं होता! जैसे किसी कुएँसे सैकड़ों वर्षोंतक असंख्य आदमी जल पीते रहें तो भी उसका जल वैसा-का-वैसा हो रहता है, ऐसे ही असंख्य टीकाएँ लिखनेपर भी गीता वैसी-की-वैसी ही रहती है, उसके भावोंका अन्त नहीं आता। कुएँके जलकी तो सीमा है, पर गीताके भावोंकी सीमा नहीं है। अतः गीताके विषयमें कोई कुछ भी कहता है तो वह वास्तवमें अपनी बुद्धिका ही परिचय देता है- ‘सथ जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई।’ (मानस, बाल० १३।१)।

भगवान्‌की वाणी बड़े-बड़े ऋषि-मुनियोंकी वाणीसे भी ठोस और श्रेष्ठ है; क्योंकि भगवान् ऋषि-मुनियोंके भी आदि हैं-‘अहमादिहिं देवानां महर्षीणां च सर्वशः’ (गीता १०।२)। अतः कितने ही बड़े ऋषि-मुनि, सन्त-महात्मा क्यों न हों और उनकी वाणी कितनी ही श्रेष्ठ क्यों न हो, पर वह भगवान्‌की दिव्यातिदिव्य वाणी ‘गीता’ की बराबरी नहीं कर सकती। पगडण्डीको ‘पद्धति’ कहते हैं और राजमार्ग, घण्टापथ अथवा चौड़ी सड़कको ‘प्रस्थान’ कहते हैं। गीता, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र- ये तीन प्रस्थान हैं, शेष सब पद्धतियाँ हैं। प्रस्थानत्रयमें गीता बहुत विलक्षण है; क्योंकि इसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र दोनोंका ही तात्पर्य आ जाता है।गीता उपनिषदोंका सार है, पर वास्तवमें गौताकी बात उपनिषदोंसे भी विशेष है। कारणकी अपेक्षा कार्यमें विशेष गुण होता है; जैसे- आकाशमें केवल एक गुण ‘शब्द’ है, पर उसके कार्य वायुमें दो गुण ‘शब्द और स्पर्श’ हैं।

वेद भगवान्‌के निःश्वास हैं और गीता भगवान्‌की वाणी है। निःश्वास तो स्वाभाविक होते हैं, पर गौता भगवान्‌ने योगमें स्थित होकर कही है। अतः वेदोंकी अपेक्षा भी गीता विशेष है। सभी दर्शन गीताके अन्तर्गत हैं, पर गीता किसी दर्शनके अन्तर्गत नहीं है। दर्शनशास्त्रमें जगत् क्या है, जीव क्या है और ब्रह्म क्या है-यह पढ़ाई होती है। परन्तु गीता पढ़ाई नहीं कराती, प्रत्युत अनुभव कराती है। गीतामें किसी मतका आग्रह नहीं है, प्रत्युत केवल जीवके कल्याणका ही आग्रह है। मतभेद गोतामें नहीं है, प्रत्युत टीकाकारोंमें है। गीताके अनुसार चलनेसे सगुण और निर्गुणके उपासकोंमें परस्पर खटपट नहीं हो सकती। गीतामें भगवान् साधकको समग्रकी तरफ ले जाते हैं। सगुण निर्गुण, साकार-निराकार, द्विभुज, चतुर्भुज, सहस्रभुज आदि सब रूप समग्र परमात्माके ही अन्तर्गत हैं। समग्ररूपमें कोई भी रूप बाकी नहीं रहता। किसी की भी उपासना करें, सम्पूर्ण उपासनाएँ समग्ररूपके अन्तर्गत आ जाती हैं। सम्पूर्ण दर्शन समग्ररूपके अन्तर्गत आ जाते हैं। अतः सब कुछ परमात्माके ही अन्तर्गत है, परमात्माके सिवाय किंचिन्मात्र भी कुछ नहीं है- इसी भावमें सम्पूर्ण गीता है।

Additional information
Weight 2.3 kg
Dimensions 28 × 19 × 5 cm
Publisher

Language

Edition

2024

Pages

1296

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Hardcover

Size

28*6*18

Weight

2.20 KG

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