Sandhyopasan Vidhi सन्ध्योपासन विधि:
Author | |
---|---|
Publisher | |
Language | |
Edition |
2024 |
ISBN |
9789392989155 |
Pages |
24 |
Cover |
Paperback |
Size |
22*1*14(L*B*H) |
Weight |
110 GM |
Item Code |
9789392989155 |
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सन्ध्योपासन विधि: (Sandhyopasan Vidhi) सन्ध्या द्विजमात्र के लिए आवश्यक कर्म है। सन्ध्या का अर्थ होता है-दो वेलाओं का सन्धिकाल। शास्त्रों में वर्णन है कि जो प्रतिदिन प्रमाद को त्याग कर सन्ध्या करते हैं, वे पापमुक्त होकर सनातन ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं। ‘अहरहः सन्ध्यामुपासीत’ इस शास्त्रवचन के अनुसार समस्त द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) को प्रतिदिन सन्ध्या करनी चाहिए। इस पृथ्वी पर जितने भी स्वकर्मच्युत द्विज हैं, उनको पवित्र करने के लिए ब्रह्मा जी ने सन्ध्या की उत्पत्ति की है। दिन अथवा रात्रि में अज्ञानवश जो पापकर्म हो जाते हैं, त्रिकाल सन्ध्या करने से वे नष्ट हो जाते हैं।
सूर्योदय से पूर्व की गई सन्ध्या उत्तम मानी गई है। सूर्योदय तक मध्यम तथा सूर्योदय के पश्चात् की गई सन्ध्या अधम प्रकार की होती है। प्रातःकाल की सन्ध्या तारों के रहते हुए, मध्याह्न की सन्ध्या जब सूर्य आकाश के मध्य में स्थित हो और सायंकाल की सन्ध्या सूर्यास्त के पहले की जानी चाहिए। जो ब्राह्मण त्रिकाल सन्ध्या न कर सके उसे कम से कम दो बार सन्ध्या करनी चाहिए। दो बार भी सम्भव न हो तो प्रातःकाल की सन्ध्या तो अवश्य ही करनी चाहिए। क्योंकि सन्ध्या के बिना किये गये किसी पुण्य कर्म का फल हमें नहीं मिलता। सन्ध्याहीन द्विज अपवित्र तथा किसी भी धार्मिक कृत्य करने के अयोग्य माना जाता है। ब्राह्मणों के लिए शास्त्रों में विधान है- ‘ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयः ज्ञेयश्च’ ब्राह्मण बिना किसी कारण के इसे स्वधर्म मानकर धर्माचरण करे, छः अङ्गों सहित वेदों का अध्ययन करे तथा उसका तात्पर्य समझे। (देवी भा० ११/१६/७)
शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है कि जिस द्विज को सन्ध्या का ज्ञान नहीं है अथवा जिसने सन्ध्या की उपासना नहीं की है, वह द्विज जीवित रहते हुए शूद्र के समान है तथा मृत्यु के पश्चात् कुत्ते की योनि को प्राप्त करता है। प्रातःकाल की तथा मध्याह्न काल की सन्ध्या पूर्वाभिमुख तथा सायंकालीन सन्ध्या पश्चिमाभिमुख करनी चाहिए।उचित समय पर की गई सन्ध्या मनुष्य की सारी कामनाओं की पूर्ति करती है। जो सन्ध्या उचित समय पर नहीं की जाती वह बन्ध्या स्त्री के समान निष्फल होती है। सन्ध्या के द्वारा ब्राह्मणों में तेजस्विता, आत्मबल की वृद्धि होती है। सन्ध्या के बिना पूजन आदि करने की योग्यता नहीं आती है। विभिन्न परिस्थितियों में, जैसे-राष्ट्र क्षोभ, भय की उपस्थिति आदि में, सन्ध्या-लोप होने पर भी दोष नहीं लगता। आत्मकल्याण के इच्छुक सभी द्विजों को प्रतिदिन नियमपूर्वक सन्ध्योपासना करनी चाहिए। यह पुस्तक सभी द्विजातियों, पुरोहितों के लिए अत्यन्त सुगमरीति से सन्ध्यावन्दन अनुष्ठान में सहायक सिद्ध होगी।
Weight | 0.120 kg |
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Dimensions | 22 × 14 × 1 cm |
Author | |
Publisher | |
Language | |
Edition |
2024 |
ISBN |
9789392989155 |
Pages |
24 |
Cover |
Paperback |
Size |
22*1*14(L*B*H) |
Weight |
110 GM |
Item Code |
9789392989155 |
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