Chhote Raja छोटे राजा

Author

,

Publisher

Language

Edition

2024

ISBN

9789357758345

Pages

356

Cover

Paperback

Size

23*2*15(L*B*H)

Weight

570 gm

Item Code

9789357758345

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SKU: 9789357758345 Categories: , ,
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Description

छोटे राजा –

ज्ञानपीठ पुरस्कार (1983) से सम्मानित कन्नड़ कथाकार मास्ति वेंकटेश अय्यंगार के सर्वाधिक उल्लेखनीय ऐतिहासिक उपन्यास ‘चिक्क वीरराजेन्द्र’ का हिन्दी रूपान्तर है-छोटे राजा। मैसूर के निकट एक छोटे-से भू-प्रदेश कोडग राज्य के अन्तिम शासक की कहानी है यह । सुशील एवं बुद्धिमती रानी तथा दो योग्य मन्त्रियों के रहते हुए भी अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के कारण उसे अपने विनाश से कोई नहीं रोक पाया; यहाँ तक कि अंग्रेज़ों से पराजित होकर उसे निर्वासन का तिरस्कार भी सहना पड़ा।

छोटे राजा एक शासक के विनाश की कथा ही नहीं है, एक समाज की निरीहता की भी कहानी है। कन्नड़ के ऐतिहासिक उपन्यासों में किसी समाज का और उसके विभिन्न अंगों का ऐसा सजीव चित्रण अन्यत्र कम ही मिलता है। अपने ऐतिहासिक उपन्यासों में मास्ति जी का मूल उद्देश्य समाज के उत्थान-पतन का अध्ययन करना रहा है। उनके अनुसार, व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण उस व्यक्ति में ही निहित होता है। हाँ, नियति के अदृश्य हाथ की प्रबल भूमिका भी वहाँ सक्रिय रहती है।

भाषा की सरलता और शैली का सौष्ठव मास्ति जी के लेखन की अपनी विशेषता है। साथ ही, किसी गहन अनुभव को कम से कम शब्दों में सम्पूर्णता देने की अद्भुत क्षमता ने मास्ति के लेखन को एक सराहनीय परिपक्वता प्रदान की है। यही सब कारण हैं कि उनका यह बहुचर्चित उपन्यास हिन्दी कथा-प्रेमियों के लिए भी विशेष रुचिकर बना। पाठकों को समर्पित है इसका नया संस्करण, नयी साज-सज्जा के साथ ।

Additional information
Weight 0.59 kg
Dimensions 23 × 3 × 15 cm
Author

,

Publisher

Language

Edition

2024

ISBN

9789357758345

Pages

356

Cover

Paperback

Size

23*2*15(L*B*H)

Weight

570 gm

Item Code

9789357758345

About the Author
"मास्ति वेंकटेश अय्यंगार - 6 जून 1891 को कर्नाटक के सीमावर्ती ज़िले कोलार के मास्ति गाँव में जन्म । काव्य-नाम 'श्रीनिवास' होते हुए भी समस्त कर्नाटक में 'मास्ति जी' के नाम से प्रख्यात । छात्र-जीवन में निरन्तर अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए मैसूर राज्य सिविल सर्विस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1914 से कई उच्च सरकारी पदों पर कार्यशील रह कर 1944 में सेवानिवृत्त । तदुपरान्त 25 वर्षों तक 'जीवन' पत्रिका का सम्पादन-कार्य किया । मातृभाषा तमिल होते हुए भी साहित्य-सृजन के लिए प्रमुखतः कन्नड़ को चुना। कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक, समीक्षा, जीवनी आदि साहित्य की सभी विधाओं में शताधिक कृतियों का लेखन-प्रकाशन । उनकी रचनाओं में 15 कहानी-संग्रह, 3 ऐतिहासिक उपन्यास, 17 कविता-संग्रह, 18 नाटक, 18 निबन्ध-आलोचना के अलावा 9 सम्पादित ग्रन्थ तथा अंग्रेज़ी में 15 पुस्तकें सम्मिलित हैं। 'कन्नड़ कहानी के जनक' के रूप में लोकप्रिय श्री मास्ति 1969 में 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार', 1971 में साहित्य अकादेमी के फेलो और वर्ष 1983 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित हुए। वे कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के तथा कन्

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