Bana Rahe Banaras बना रहे बनारस

Author

Publisher

Language

Edition

2024

ISBN

9788119014217

Pages

152

Cover

Hardcover

Size

23*2*15(L*B*H)

Weight

290 gm

Item Code

9788119014217

Original price was: ₹325.00.Current price is: ₹269.00.

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Description

बना रहे बनारस –
‘तीन लोक से न्यारी’ और मिथकीय विश्वास के अनुसार त्रिपुरारि के त्रिशूल पर बसी काशी नगरी का नाम चाहे जिस कारण से बनारस पड़ा हो, किन्तु इतना सुनिश्चित है कि यहाँ का जीवन रस अद्वितीय है। काल और कालातीत के साक्षी बनारस के जीवन सर्वस्व को विश्वनाथ मुखर्जी ने ‘बना रहे बनारस’ में जीवन्त किया है। बनारस के विषय में कही-सुनी जानेवाली उक्तियों में एक यह भी है, ‘विश्वनाथ गंगा वटी, गान खान औ पान/ संन्यासी सीढ़ी वृषभ काशी की पहचान।’ इस पहचान को लेखक ने कुछ ऐसे शब्दबद्ध किया है कि ‘बतरस’ में बनारस का आस्वाद उतर आया है। ‘एक बूँद सहसा उछली’ में यशस्वी साहित्यकार अज्ञेय ने ठीक ही लिखा है—’हर एक बतर का अपना एक स्वाद होता है।’
‘बना रहे बनारस’ एक नगर को केन्द्र बनाकर लिखा गया संस्कृति विमर्श है। भारतीय ज्ञानपीठ से इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1958 में प्रकाशित हुआ था। तत्कालीन बनारस और वर्तमान बनारस के बीच जाने कितना जल गंगा में प्रवाहित हो गया, किन्तु तत्त्वतः बनारस वही है जिसका अवलोकन लेखक विश्वनाथ मुखर्जी ने किया था। यही कारण है कि इतिहास, समाजशास्त्र और जीवनचर्या की ललित अभिव्यक्ति आज भी सहृदय प्रभावित करती है। ‘बनारस दर्शन से भारत दर्शन हो जायेगा’ पुस्तक का यह वाक्य अनेक अर्थों में स्वतःसिद्ध है। कहा जा सकता है कि यह शब्दयात्रा अन्ततः तीर्थयात्रा की अनुभूति में सम्पन्न होती है। प्रस्तुत है अत्यन्त पठनीय व प्रभावी पुस्तक का यह नये कलेवर में नयी साज-सज्जा के साथ ‘पुनर्नवा’ संस्करण।

Additional information
Weight 0.29 kg
Dimensions 23 × 2 × 15 cm
Author

Publisher

Language

Edition

2024

ISBN

9788119014217

Pages

152

Cover

Hardcover

Size

23*2*15(L*B*H)

Weight

290 gm

Item Code

9788119014217

About the Author
"विश्वनाथ मुखर्जी - 23 जनवरी, 1924 को काशी (वाराणसी) में जनमे विश्वनाथ मुखर्जी काशी की ही मिट्टी में पले-पुसे, बड़े हुए। बंगाली परिवार से होते हुए भी वे खाँटी बनारसी रहे। शक्ल-सूरत, पहनावा और बोली से उनके भोजपुरी होने का भ्रम हो जाता था। 1942 में उन्होंने कथाकार के नाते हिन्दी में प्रवेश किया और फिर हास्य-व्यंग्य लेखक एवं पत्रकार के रूप में वे हिन्दी पाठक-जगत् के चहेते बन गये। वे 'अजगर', 'तरंग' और फिर 'आपका स्वास्थ्य' के सहायक सम्पादक भी रहे। आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक श्री मुखर्जी को उनकी कृति 'काशी : अतीत और वर्तमान' के लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया। अत्यन्त सामाजिक होने के कारण वेतन का हिस्सा वे मित्रों की तीमारदारी, दूसरों की मुसीबत और अपनी 'कमबख़्ती' को अर्पण करते रहे। नसीहतों के जवाब में उन्होंने सिर्फ़ इतना ही फ़रमाया : 'तू भी अय नासेह! किसी पर जान दे हाथ ला उस्ताद! कहो कैसी कही!' "

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